बिहार में नई सरकार का गठन हो गया है। नीतीश कुमार लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं। इधर, महागठबंधन में कांग्रेस और राजद के बीच मतभेद सामने आने लगे हैं। राजद नेता शिवानंद तिवारी ने कांग्रेस की टॉप लीडरशिप पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि गठबंधन के लिए कांग्रेस बाधा की तरह रही। चुनाव के वक्त राहुल गांधी पिकनिक मना रहे थे। कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन 70 रैलियां भी नहीं कीं। तिवारी ने कहा कि क्या कोई पार्टी ऐसे चलाई जाती है? पीएम नरेंद्र मोदी राहुल गांधी से ज्यादा उम्रदराज हैं, लेकिन उन्होंने राहुल से ज्यादा रैलियां कीं। राहुल ने केवल 3 रैलियां क्यों कीं?
दरअसल, इस बार के चुनाव में राजद तेजस्वी के ताजपोशी की तैयारी कर रही थी। भास्कर को छोड़ दें तो तमाम एग्जिट पोल भी उसी के फेवर में थे, लेकिन जब रिजल्ट डिक्लेयर हुआ तो महागठबंधन बहुमत से चंद कदम दूर रह गया। और अब इसका ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा जा रहा है। आगे इसका असर गठबंधन पर होगा या नहीं ये तो वक्त बताएगा, लेकिन बिहार में कांग्रेस और राजद के बीच गठबंधन का ये खेल कोई नया नहीं है। जब से राजद की एंट्री हुई, तब से दोनों के बीच मिलने बिछुड़ने का दौर चलता रहा है।
दोनों के गठबंधन को समझने के लिए हमें 31 साल पहले जाना होगा। 1989 के अंत में भागलपुर में दंगा हुआ। सैकड़ों जानें गईं। तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। लालू यादव ने मुस्लिम कार्ड खेला और दंगों के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया। इसके बाद 1990 में विधानसभा चुनाव हुआ। कांग्रेस यह चुनाव हार गई। जनता पार्टी, जो नई- नई बनी थी उसे बहुमत मिला और मुख्यमंत्री बने लालू यादव। सीएम बनते ही लालू ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया। इस तरह बिहार की राजनीति में एक नए समीकरण MY( मुस्लिम और यादव) की एंट्री हुई और यहीं से बिहार में कांग्रेस के पतन का दौर शुरू हुआ।