मानव के जीवन मे संघर्ष रहता है इसी तरह भगवान के जीवन मे संघर्ष रहा हर जन्म में सुख दुख साथ चले फिर तो मनुष्य है वह हर कठिन परिस्थिति को देखे तो पता लगेगा ईश्वर के सामने उनका दुख कुछ नही है वह मनुष्य रूप में संसार मे आए लेकिन जीवन का आनंद कभी नही ले पाए हर युग मे धर्म की रक्षा के लिये कितना संघर्ष किया फिर भी संसार से कुछ नही मांगा मानव जरा से दुख में अंधकार में जीता है भगवान पत्थर की मूर्ति है तो क्या हुआ दर्द उनको भी होता है दुख का अहसास उन्हें भी रहता है मनुष्य यदि अच्छे कर्म करे अपने लिये नही ईश्वर के लिये तो दुख आकर भी जल्दी दूर हो जाएगा अंधकार से निकलकर प्रकाश में जाना चाहिये सुख दुख कर्म का फल होता है फर्क सिर्फ इतना है ईश्वर को धर्म की रक्षा के लिये दुख सहन करना पड़ता है मनुष्य को कर्म के अनुसार फल मिलता है ।
यदि किसी भी गंभीर बीमारी से जान चली जाती है इलाज रिसर्च नही की जाती बीमारी पर शोध नही किए जाते तो कही ना कहि योग्यता आत्मविशवास की कमी है बीमारी को दूर करना होता है जड़ से खत्म तभी मनुष्य लंबी उम्र जीता है बीमारी पर इलाज किया जाता है जीवन दिया जाता है आत्मविशवास खोया नही जाता है गाँधीजी के नियम उनके आचरण को अपनाता है वह उनके समान जीता है जो सातविक आहार नियम समय ईश्वर के ध्यान मानवता देश की सेवा में लगे रहे सभी को उमके आदर्शो पर चलना चाहिए।