विधानसभा अध्यक्ष क्या राज्यपाल का आदेश मानने के लिए बाध्य हैं?

मध्यप्रदेश में सियासी घमासान अब संवैधानिक प्रक्रिया के आसपास सिमट गया है और अब सारी गतिविधियां दो संविधानिक शख्सियतों के आसपास केंद्रित हो गई हैं. इनमें पहली शख्सियत हैं विधानसभा अध्यक्ष और दूसरे हैं राज्यपाल लालजी टंडन राज्यपाल बजट सत्र में अभिभाषण के तुरंत बाद विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के निर्देश जारी कर चुके हैं. यानी सोमवार को ही इस बात का फैसला हो जाएगा कि सरकार रहेगी या जाएंगी. लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल  यही खड़ा किया जा रहा है कि क्या विधानसभा अध्यक्ष राज्यपाल के निर्देश को मानने के लिए बाध्य हैं. इसको लेकर दो मत हैं 



एक मत ये है कि किसी भी सरकार के पास बहुमत होने या न होने का फैसला सदन में ही हो सकता है.राज्यपाल को यदि संदेह है तो वे सरकार को विश्वास मत हासिल करने की सलाह दे सकते हैं. लेकिन आदेश नहीं दे सकते.



जबकि दूसरा मत ये है कि, राज्यपाल प्रदेश के संवैधानिक प्रमुख होते हैं.लिहाजा राज्यपाल को संदेह हो जाए कि सरकार के पास बहुमत नहीं है तो वो फ्लोर टेस्ट का निर्देश दे सकते हैं.वो भी तब, जबकि राज्यपाल इससे संतुष्ट हो जाएं कि वाकई संवैधानिक संकट की स्थिति बन गई है, और सरकार बहुमत खो चुकी है.



कुछ संवैधानिक विशेषज्ञों मानना है कि विधानसभा अध्यक्ष के ही मास्टर ऑफ हाउस होता है लिहाजा सदन में फ्लोर टेस्ट कब कराना ये फैसला विधानसभा अध्यक्ष ही लेंगे.



जहां तक राज्यपाल के मुख्यमंत्री को लिखे पत्र का सवाल है उसका मजमून कुछ यूं है 



राज्यपाल ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 174 और 175 (2) में वर्णित संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए वे निर्देश देते हैं कि एमपी की विधानसभा का सत्र 16 मार्च को उनके अभिभाषण के साथ शुरू होगा. राज्यपाल ने स्पष्ट कहा है कि उनके अभिभाषण के तत्काल बाद सदन में जो एकमात्र काम होगा वो विश्वास मत पर मतदान होगा.राज्यपाल ने ये भी निर्देश दिए हैं कि ये कार्यवाही किसी भी हाल में स्थगित, विलंबित या निलंबित नहीं की जाएगी.



 राज्यपाल के निर्देश को लेकर मत भले ही अलग-अलग हो लेकिन राज्यपाल के आदेश के बाद ये साफ जरूर हो गया है कि, मध्यप्रदेश में स्थिति गंभीर है और सीएम कमलनाथ को 16 मार्च को सदन में बहुमत साबित करना है.जिसके बाद इस बात का फैसला हो जाएगा कि सरकार रहेगी या जाएंगी



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