आस्था व विश्वास के साथ बजाएं ताली-थाली-घंटी, जानिए इसके वैज्ञानिक महत्‍व

नई दिल्ली। CoronaVirus: 22 मार्च रविवार को शाम पांच बजे अपने अपने घरों में से ही ताली बजाकर, थाली बजाकर, घंटी बजाकर एक-दूसरे का आभार जताएं और इस वायरस से लड़ने के लिए एकजुटता दिखाएं...। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशवासियों से की गई इस अपील को हल्के में कतई न लें। उन्होंने जो कहा और समझाया, उसके मायने सभी को समझ में आए। लेकिन एक बात, जो उन्होंने नहीं समझाई, वह हमने भारतीय संस्कृति और विज्ञान के जानकारों से समझी।


दरअसल, सनातन धर्म-संस्कृति में करतल ध्वनि, घंटा ध्वनि, शंख ध्वनि का अपना महत्व है। मंदिर हों या घर, इन ध्वनियों का पूजा पद्धति में विशेष स्थान है। आयुर्वेद में इनके चिकित्सकीय महत्व का वर्णन है। आचार्य प्रो. बी एन द्विवेदी, भौतिकी विभाग, आइआइटी-बीएचयू ने बताया, घंटियां इस तरह से बनाई जाती हैं कि जब वे ध्वनि उत्पन्न करती हैं तो यह हमारे दिमाग के बाएं और दाएं हिस्से में एक एकता पैदा करती हैं। जिस क्षण हम घंटा-घंटी बजाते हैं, यह एक तेज और स्थायी ध्वनि उत्पन्न करते हें, जो प्रतिध्वनि मोड में न्यूनतम 7 सेकंड तक रहता है।