सेवा, समर्पण और संदवेदना की मिसाल हैं भोपाल की माधुरी मिश्रा

माधुरी मिश्रा का जन्म 30 जनवरी 1962 को जबलपुर में हुआ था। माधुरी के पिता बीएस दुबे डीएसपी थे। माधुरी ने अपनी पढ़ाई कमला नेहरू हायर सेकेंडरी स्कूल से की। उसके बाद नूतन कॉलेज से पूरी पढ़ाई कंप्लीट की है। माधुरी भोपाल में रहती हैं।



माधुरी मिश्रा एक ऐसी कर्मवीर हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन बुजुर्गजनों की सेवा में समर्पित कर दिया। जिनका इस दुनिया में कोई नहीं था, उन्हें माधुरी ने अपना बना लिया।


अपनों ने भी जिनका साथ छोड़ दिया था, माधुरी ने उनसे अपना साथ जोड़ लिया। एक नवजात शिशु से लेकर वयोवृद्ध उम्र तक हर आयु वर्ग के लोगों को माधुरी मिश्रा ने आश्रय दिया। अनेक बुजुर्ग माता-पिता को आदर सम्मान से अपनाया।


उनके आश्रम में लगभग 30 ऐसे लोग निवासरत हैं, जिनका कहीं कोई सहारा नहीं है। ऊपर से कई तो ऐसे हैं, जो दिव्यांगता, शारीरिक अस्वस्थता, मानसिक अस्वस्थता, आर्थिक विपन्नता जैसी तमाम दूसरी पीड़ा से भी गुजर रहे हैं। वहां महिलाएं भी हैं, और पुरुष भी हैं। माधुरी मिश्रा ने उन सभी के लिए अपने आश्रम में प्रेम, सदभाव, सेवा और समर्पण का ऐसा वातावरण निर्मित कर दिया है, कि अब वह आश्रम एक परिवार की तरह जीता है।


माधुरी स्वयं के खर्च और समाज के सहयोग से अपनी संस्था चला रही हैं। सरकार से कोई मदद नहीं मिली, लेकिन सेवा में कोई कमी नहीं आई।


माधुरी मिश्रा के इस पुण्य कार्य में उनके परिवार का भी पूरा सहयोग रहता है। खासकर उनकी दो बेटियां उन्हें बहुत सहयोग करती हैं।


माधुरी मिश्रा को इस अमुल्य सामाजिक योगदान के लिए मदर टेरेसा अवार्ड, इंदिरा गांधी अवार्ड, आदर्श महिला सम्मान, जियो दिल से, स्वयं सिद्धा सम्मान जैसे अनेकों सम्मान नवाजा जा चुका है।


उनके जीवन का अब एक ही लक्ष्य है बुजुर्ग माता-पिता की सेवा में जीवन बिताना। यही उनका सबसे बड़ा धर्म है।


माधुरी जी से जब हम मिले तो मन बहुत खुश हुआ। ऐसा लगा जिन फरिश्तों की कहानी सुनी थी, आज उन्हें अपनी खुली आंखों से देख रहे हैं।


माधुरी मिश्रा से मिलकर लगता है कि फरिश्ते भी बस वह ऐसे ही होंगे। उनका स्वभाव इतना सरल और प्यारा है जो सीधे दिल तक पहुंचता है।


हमें गर्व है कि हम उस शहर में रहते हैं, जहां माधुरी मिश्रा जैसी कर्मवीर रहती हैं। हमारा सौभाग्य है कि हम उनके घर जाकर उनसे मिल सके। उनके घर और आश्रम में वही सुकून और शांति की अनुभूति हुई, जो मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे जैसी जगहों पर मिला करती है।


कुछ पंक्तियां माधुरी मिश्रा के सम्मान में पेश है-


हर एक माता-पिता की बात समझती है…


कुछ ना बोले मां पिता फिर भी सुनने की क्षमता रखती है…


उनकी खामोशी किताब जैसे पढ़ लेती है…


उनके आंसू को खुशी में बदल देती है


उनकी खुशी कम ना हो यह हर पल दुआ करती है


बच्चों के जैसा उनका ख्याल रखती है,


आश्रम नहीं, अपना घर बनाया है,


 


जहां हर एक माता-पिता को उन्होंने सम्मान से अपना बनाया है।