मनुष्य ने हर जंगल के प्राणियों को धरती का बोझ समझ रहा है

मनुष्य ने हर जंगल के प्राणियों को धरती का बोझ समझ रहा है विदेशों मे जंगल के प्राणियों की संख्या बढ़ जाती है तो यह लोग उन्हें मार देते है अपना सवार्थ देखना दया नही है प्राणियों के प्रति आज प्रकति की रक्षा इन्ही जंगल के प्राणियों से होती है धरती पर यदि इन बेजुवान प्राणियों से नुकसान होता है तो धरती को भी मनुष्य की संख्या बढ़ने से नुजसान होता है क्योंकि मनुष्य अपने सवार्थ के लिये धरती पर प्रहार करते है यह प्राणी ज्यादा समझदार है यह धरती पर प्रहार नही प्रकति को बचाते है यदि प्राणियों को मारोगे अपने सवार्थ के लिये तो धरती छोड़ देगी मनुष्य को आसानी से वह भी अपना रुद्र रूप दिखाकर सबक सिखाएगी यदि प्राणियों के कारण बोझ बढ़ रहा है सबसे ज्यादा मुनष्य का भार धरती सहन कर रही है जैसा कर्म वैसा फल  विलुप्त वैसे हो रहे है जंगल के प्राणी इन्हें मार दिया गया तो प्रकति प्रहार करेगी  धरती गर्म होने पर जंगल मे आग लगती है प्राणियों को बचाने से धरती ठंडी होती है मारने से धरती गर्म जंगल के प्राणियों को पीने का पानी भोजन भी नही मिलता है इतनी बारिश होती है यदि बारिश के पानी को बचाया होता तो यह प्राणी भी विलुप्त नही होते ।


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