कांग्रेस की हार के बाद केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ भी उठने लगी आवाज

विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद दिल्ली में कांग्रेस एक बार फिर से रामभरोसे हो गई है। प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी दोनों का इस्तीफा तो हार के अगले ही दिन स्वीकार कर लिया गया, लेकिन नए अध्यक्ष और प्रभारी को लेकर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सका। विडंबना यह भी कि जिन्हें अंतरिम प्रभारी बनाया गया है, वह दिल्ली की राजनीति का अनुभव ही नहीं रखते। इस बीच पार्टी में केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ भी आवाज उठने लगी है।


जनवरी 2019 में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को प्रदेश की कमान सौंपी गई तो पार्टी का ग्राफ बढ़ने लगा। यही वजह रही कि फरवरी 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का जो मत फीसद घटकर नौ रह गया था, वो मई 2019 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 22.5 फीसद पहुंच गया। पिछले साल 20 जुलाई को शीला दीक्षित की मौत के बाद तीन माह प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व विहीन रही तो पार्टी का ग्राफ फिर से नीचे आ गया। गत वर्ष 23 अक्टूबर को सुभाष चोपड़ा के हाथों में प्रदेश की कमान दी गई। 3 माह की अल्पावधि में उन्होंने पार्टी को आगे बढ़ाने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन सियासी समीकरणों के चलते पार्टी का ग्राफ इस चुनाव में और नीचे गिरकर महज 4.1 फीसद पर पहुंच गया।