एक संत थे जो सत्संग करते थे सभी शिष्य को  एक जैसा ज्ञान देते थे

एक संत थे जो सत्संग करते थे सभी शिष्य को  एक जैसा ज्ञान देते थे लेकिन कुछ शिष्य की समझ आता किसी को नही जिसे नही आता वह बहुत तर्क वितर्क करते संत उन शिष्यों को ज्ञान भी देते और समझाते है लेकिन वह सब जानकर फिर प्रश्न करते तब एक दिन गुस्से में आकर संत ने कहा जितना समय तर्क में व्यतीत करते हो समय बर्बाद करते हो उतना  ध्यान अगर ईश्वर में लगाया होता तो ना समय बर्बाद होता सभी का समय कीमती होता है जो सवालो में उलझे रहते है वह अपना समय खोते है लेकिन जो ज्ञान की गहराई समझ लेता है वह तर्क वितर्क नही करते है ज्ञान को पढ़ा उसकी गहराई भी जान ली फिर भी समय बर्बाद करना मनुष्य आने वाला भविष्य को खराब करता है प्रश्न और सवालो का कोई अंत नही लेकिन समय की कीमत होती है जो निकल गया वह वापस कभी नही आता है ।


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