ईश्वर कभी मनुष्य को नही बाधते है वह तो सिर्फ मार्ग दिखाते है मनुष्य के ऊपर है उसे किस मार्ग पर चलना है वह नही बोलते की व्रत रखो या बिना कुछ खाए उनकी आराधना करो वह ना किसी का पहनावा देखते वह सिर्फ मन आत्मा देखते है मनुष्य इतना ज्ञानी वेदों का ज्ञान है शास्त्र का ज्ञान फिर भी ईश्वर के प्रति संदेह करना भक्ति मार्ग और धर्म को दूर करता है मन और आत्मा ईश्वर में नही भगवान को जानने में लगी है इसका मतलब साफ है अभी भी सब पाकर भी ईश्वर के बहुत दूर है कुछ लोग ईश्वर को नही मानते वह शास्त्र और वेदों को नही मानते जो भगवान को नही मानता शास्त्र नही मानता वह तो नास्तिक है जो भगवान वेद शास्त्र को मानते हुए भी सन्देह करते है वह ईश्चर के पास होते हुए भी दूर रहते क्योकि उनकी आत्मा ईश्वर से दूर है भक्ति मार्ग पर चलकर ज्ञान को फैलाकर भी ईश्वर से वह दूर हो गया जब सन्देह होता है तब आत्मा भी गलत दिशा में मुड़ जाती है जब व्यक्ति के पास कुछ नही था तब भगवान बहुत निकट थे जब वह संसार मे बंध गया उसे ईश्वर के पास समय नही था मान सम्मान सब मिला लेकिन ईश्वर की नजर में ऊपर उठना था संसार की नजर में नही इसलिये बहुत कठिन रास्ता है भगवान को पाने के लिये वह इतने आसानी से मिल जाते तो हिमालय में हजारों सालों से तपस्वी तप नही करते उन्हें भी मुक्ति मिल जाती सन्त जो सत्संग भागवत रामायण करते है वह बार बार संसार मे नही आते अभी भी वह दूर है भगवान से कर्म के साथ फल की अपेक्षा करी यही दूरी होती है
ईश्वर कभी मनुष्य को नही बाधते है वह तो सिर्फ मार्ग दिखाते है